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टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सर की और बाद में खुद संकट में घिर गईं कंपनियां

Cricket News : भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर नाम छपना किसी भी ब्रांड के लिए प्रतिष्ठा की बात होती है। ये न सिर्फ मार्केटिंग में फायदा दिलाता है, बल्कि कंपनी को राष्ट्रीय पहचान भी देता है। लेकिन बीते दो दशकों में जो ट्रेंड सामने आया है, वो इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक अजीब संयोग जैसा लगता है — जिस भी कंपनी ने टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सर की, वह या तो कानूनी विवादों में फंसी या फाइनेंशियल संकट में डूब गई।

अब इस लिस्ट में नया नाम है: Dream11, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित प्रमोशन एंड रेग्युलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल, 2025 ने हिला कर रख दिया है।

Dream11 भारत की सबसे बड़ी फैंटेसी स्पोर्ट्स कंपनियों में से एक है, जिसकी वैल्यूएशन लगभग 8 अरब डॉलर बताई जाती है। लेकिन अब इसका मौजूदा बिजनेस मॉडल खतरे में है।

नया कानून Real Money Gaming (RMG) पर सख्त पाबंदियां लगाता है। इसमें स्पष्ट है कि स्किल-बेस्ड गेम्स भी प्रतिबंधित होंगे अगर उनमें पैसों का लेन-देन होता है। ऐसे में Dream11 को भारत में अपने ऑपरेशंस बंद करने पड़ सकते हैं।

2013 में सहारा से शुरू हुई यह ‘मनहूस लिस्ट’ अब Dream11 तक आ पहुंची है। आइए नजर डालते हैं उन कंपनियों पर जिन्होंने टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सर की और बाद में खुद संकट में घिर गईं।

सहारा (2001-2013)-

सबसे लंबी साझेदारी (12 साल) लेकिन बाद में SEBI विवाद, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, और चेयरमैन सुब्रत रॉय की गिरफ्तारी के साथ कंपनी का पतन शुरू हो गया।

स्टार इंडिया (2014-2017)

विराट-रोहित का स्वर्णिम दौर, लेकिन कंपनी पर मार्केट डॉमिनेंस के दुरुपयोग का आरोप। अंततः Star India का Jio के साथ मर्जर हुआ और वह पीछे छूट गया।

ओप्पो (2017-2020)

1079 करोड़ की भारी डील लेकिन कमाई में घाटा और पेटेंट विवाद भारी पड़े। करार को बीच में ही छोड़ना पड़ा।

बायजू (2020-2022)

शुरुआती सफलता के बाद कंपनी की वैल्यू 22 अरब डॉलर से गिरकर लगभग शून्य पर आ गई। BCCI को भुगतान में चूक, NCLT में मामला।

ड्रीम 11 (2023 से अब तक)

358 करोड़ की डील। पहले 1200 करोड़ की GST चोरी का आरोप, और अब नया कानून बना गेमचेंजर। कंपनी का भारत में कारोबार बंद होने की कगार पर।

इन घटनाओं से एक पैटर्न सामने आता है टीम इंडिया की जर्सी पर नाम आने से लोकप्रियता मिलती है, लेकिन शायद उतना ही बड़ा दबाव और जोखिम भी साथ आता है। ब्रांड्स को लगता है कि क्रिकेट की लोकप्रियता उनके प्रोडक्ट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएगी। लेकिन हाइपर-विजिबिलिटी, पब्लिक स्क्रूटनी, और भारी निवेश का दबाव अक्सर उन्हें झुका देता है।

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